बैठे ठाले। ( व्यंग्य )
मिल गया है कोड़ा ,बस चाहिए जीन लगाम और घोडा
मैंने कथा , कहानी , किस्से, काल्पनिक उपन्यास , आदि पढ़ना बहुत पहले छोड़ दिया है. दिल बहलाने के लिए मैं अक्सर उच्च सरकारी पदाधिकारियों या अपने प्रिय राजनेताओं द्वारा घोषित निजी संपत्ति का व्योरा देख लेता हूँ. एक पुरानी फ़िएट मोटर कार ११०० स्क्वायर फ़ीट का एक फ्लैट , पत्नी के ११२ ग्राम के सोने के जेवर , बैंक में ६४०२ रुपये , हाँथ में ८९९ रुपये की नकदी। यह सब पढ़कर मुझे वही आनंद सस्ते में प्राप्त हो जाता है जो अन्य लोगों को क्रिएटिव फिक्शन पढ़ने से होता है.
बैंक से पैसे लेकर उड़नछू हो गए महान विभूतियों की सूची का नियमित पाठ करना भी मुझे बहुत भाता है.ईस्ट इंडिया कंपनी में लूट ,पाट, शोषण , धोखा धड़ी से अकूत धन कमाकर कंपनी बहादुर के लोग इंग्लैंड में बाकी जिंदगी नवाबों की शान शौकत से गुज़iरते थे। हमारे उद्यमियों द्वारा अंग्रेज़ो द्वारा स्थापित इस महान परम्परा के निर्वाह से मुझे बहुत प्रसन्नता होती है पर उस लिस्ट में किसी बिहारी का नाम न देखकर मैं बहुत हताश हो जाता हूँ। न जाने मुझे ऐसा क्यों ऐसा लगने लगता है कि ब अक्षर ही अभिशप्त हैं। ब से बेवकूफ, ब से बुड़बक,बांगड़,बकलोल, बलबल ,बताह , बउल, बौड़ाह , बकचोंधर , बम्बड़, बुद्धू, बैल, और भी बहुत सारे विशेषण हैं जिनकी चर्चा यहाँ नहीं की जा सकती। दुर्भाग्य से ब से बिहार भी होता है। अतः वाणी और वांग्मय में प्रचलित धारणाओं में बिहार के साथ ये विशेषण भी जुड़ गए। ब से बकरी भी होती है. बिहार के बारे में संभवतः सबसे सभ्य और गैर अपमानजनक उक्ति है कि बिहारी बकरी की तरह निरीह और सीधे होते हैं। मैं अपने शोध से इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि बिहारी और बकरी इन दो शब्दों के युग्मिकरण का श्रेय बहुत हद तक , एक और सिर्फ एक विद्यालय को जाता है. इस विद्यालय के पास आउट दुनिया भर में अपने अपने क्षेत्रों में शीर्षस्थ पदों पर हैं। सही मायने में वे बिहारी एलीट हैं. परन्तु एलीट की भी एक सनक होती है. सबसे अलग दिखने की। अभी हाल में इसी विद्यालय के ऐसे दो मित्रों ने मुझे एक महानगरी में वहां के सबसे अच्छे क्लब में रात्रि भोज पर आमंत्रित किया। हम कुल छह जने थी , हम तीन और हम तीनों की पत्नियां। पर रह रह कर उस पॉश क्लब में भी बकरी बाजार में बैठने का आ भास होने लगा। ये दोनों बंधु जीवन भर " मैं " बोलने के लिए कृत संकल्प हैं । हम लोग कभी कभार मौके की नज़ाकत देखते हुए बिहारी ‘हम’ की मर्दानगी को छोड़ " मैं " का लबादा भी ओढ़ लेते है , पर यह पूर्ण रूप से तात्कालिक व्यवस्था होती है. इन कुलीन बिहारियों की गर्दन पर आप तलवार भी रख देंगे तो ये मैं -मियाते ही रहेंगे। अब अगर आप आरा के हैं , या दरभंगा के हैं ,या वैशाली, छपरा, सहरसा, जहानाबाद के हैं तो आप कितना भी यत्न कर लें , आप के "मैं" के पीछे का झांकता हुआ टोनल इन्फ्लेक्शन - रेघाना , र और ड़ का भेद भाव मिटाना , बिहार से अपनी दूरी बनाने के लिए स का परित्याग करके श के शरण में चले जाना - आप की पोल खोल देगा। एलिट की बात तो छोड़ ही दीजिये , स्नॉबरी उनको शोभा देता है , ये साले टूट पूंजिये बिहारी भी देश के कोने कोने में रिक्शा ठेला चलते हुए ये नवाबी शौक पाल लेते हैं.
आज से बीस पच्चीस तीस साल पहले की बात है. मैं अपनी पत्नी एवं बच्चों के साथ दिल्ली एयरपोर्ट बहुत देर रात गए फ्लाइट से उतरा। उतनी रात को मैं अपने किसी मित्र या परिजन को डिस्टर्ब करना उचित नहीं समझा। दिल्ली एयरपोर्ट पर उस कड़ाके की ठण्ढ में बहुत मनुहार करने पर एक टैक्सी मिली. बीच रात में ड्राइवर ऊँघ न जाय इसलिए मैंने आगे की सीट पर बैठ कर उससे बात चीत का सिलसिला शुरू किया। लिहाज़ा मेरा पहल प्रश्न था कि उन्होंने दिल्ली पर उपकार करने के लिए किस ग्राम , नगर , राज्य को सूना किया है. जैसे ही उन्होंने मुंह खोला बिहारीपन की चिरपरिचित गंध हवा में तैर गयी हांलाकि उन्होंने इसपर पश्चिमी उत्तरप्रदेश का इत्र छिड़क कर मुझे भरमाने की कोशिश की थी . एक बिहारी दूसरे बिहारी को कुत्ते की घ्राण शक्ति से सूंघ लेता है क्यूंकि हम कही भी जाँय हमारी अंडरडॉग की विरासत छाया की तरह हमारे साथ चलती है. बिहारी भाई का बिहारीपन अचानक खुल कर सामने आ गया जब हौज खास के पास गाडी लगभग उछल पड़ी. क्षमा याचना के स्वर में उसने कहा, "का करें सर, सरक बहुत ख़राब है. " एयरपोर्ट पर मुझे बाहर तक सी आई एस ऍफ़ पदाधिकारी गण छोड़ने आये थे इसलिए उसे ये मालूम था कि मैं कोई हैसियत वाला आदमी हूँ वर्ना गाडी पटक कर भी माफ़ी कौन मांगता है? बहर हाल मैंने मौका ताड़ा और उसे धो डाला। " बिहारी बहुरूपिये , ये तो बताओ कि तुम दरभंगा , मधुबनी , सहरसा कहाँ के हो।" व्यंग्य वाणों से विद्ध सम्पाती तुरत धरती पर आ गिरा। मधेपुरा जिला के सिंघेश्वर थाने के गम्हरिया गाँव के रहने वाले भोला राउत ने उस दिन आधी रात में अपनी पूरी आत्मा कथा सुना डाली।
, ब से बकैत भी होता है और बिहार भारी बकैत होते हैं। यह पोस्ट किसी और आशय से लिख रहा था और क्या क्या कह डाला। मूल मुद्दे पर मैं अब आ रहा हूँ.
बिहार में एक तालाब की रातों रात चोरी हो जाने की घटना से आह्लादित होकर मैंने अंग्रेजी में फ़ेस बुक पर एक पोस्ट लिख डाला। "A bridge was stolen in Bihar . Now a pond has been stolen too. Wait till we steal a whole ocean so that we become a coastal state and then our economic growth would be unstoppable. We are almost there . "
मैने सोचा था साल के अंत में ऐसी धमाकेदार खबर से हम बिहारियों का मनोबल बढ़ेगा और अपने सुनहरे भविष्य के प्रति आस्था जागेगी . लेकिन अधिकांश पढ़े लिखे लोगों की प्रतिक्रिया देखकर बिहार की बदहाली का राज़ समझ में आ गया. कई लोगों ने बड़ी ही कुटिल , व्यंग्यात्मक शैली में कुछ कुछ लिख डाला। हम बिहारियों को धनोपार्जन के इतिहास के बारे में कुछ खास नहीं मालूम है। असल में बिहार का यह भी दुर्भाग्य रहा है की बुद्धसे लेकर गाँधी तक जितने इस किस्म के महापुरुष हुए हैं उन्होंने अपने आड़े टेढ़े आईडिया को टेस्ट करने के लिए बिहार को ही चुना. कोई अहिंसा की बात करने लगा , कोई सहिष्णुता ,कोई संतोष की। नतीजा यह हुआ कि विश्व के सबसे महान चिंतक पियरे जोसेफ प्रूदों द्वारा दिए गया मूल मन्त्र All Property Is Theft पर कसी का ध्यान ही नहीं गया ।
बिहारी बुद्धू हैं इस बात का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है पूरा बिहार आई ए इस / आई पी एस / आई आई टी जैसे मरीचिका के पीछे भागता रहता है। इतना टैलेंट किस काम का जो सिर्फ , कुली कबाड़ी , आई ए ऐस , आई पी ऐस निर्मित करे लेकिन एक नीरज मोदी , माल्या , चौकसी , पारेख नहीं पैदा कर सके? इनमें से एक- एक हज़ारों आई ए एस और आई पी एस को मुनीम , कारपरदाज़ की तरह बहाल कर सकता है. नैतिकता के कुछ ठीकदारों ने धनोपार्जन के सबसे कारगर तरीको -चोरी चकारी -के खिलाफ ऐसा माहौल तैयार कर दिया कि लोग इस मामले में पिछड़ गए। मेरे एक पुराने शिष्य है , उनकी वर्दी उतर गयी लेकिन सेवा निवृत्त हो जाने के बाद भी चोरी भ्रष्टाचार का जिक्र होते ही वो "जागते रहो" की टेर लगाने लगते हैं. देर आयद दुरुस्त आयद। यह बात बिहारियों को समझ में आ गयी है कि धन सम्पदा एकत्रित करने का एकमात्र जरिया है चोरी।. लेकिन बिहार का दुर्भाग्य है कि बिहारियों की टांग बिहारी ही खींचते हैं। रेल लाइन की चोरी, पुल की चोरी ,तालाब की चोरी आदि खबरों पर इतनी हाय तौबा मचती है कि बेचारी नव उद्यमियों का मनोबल टूट जाता है. आप मेरे पिछले पोस्ट को ही देखिये बहुत लोगों ने अपने हर्षोल्लास को इमोजी के माध्यम से व्यक्त किया वहीँ कुछ लोगों ने बिहार के नैतिक स्खलन पर बयान दे डाला।
बहुत पहले किसी मनीषी ने बिहार की बदहाली का सबसे सटीक कारण बताया था, बिहार एक लैंड लॉक्ड राज्य है, तटीय राज्य नहीं है . इसकी गरीबी को इसका भाग्य समझकर स्वीकार करना होगा. जिस तरह भगीरथ स्वर्ग से गंगा लाये थे कुछ बिहारियों ने क्रूर भौगोलिक नियति से निबटने का संकल्प लिया है कि वे अपनी उद्यम से इसे तटीय राज्य बनाकर दम लेंगे. ये छोटी मोटी चोरियां उसी महत प्रयास का हिस्सा है , ड्राई रन. हमारे बिहारी भाई इसी आशय से मुंबई , चेन्नई , विजयवाड़ा , कोच्चि आदि जगह पर लाखों के संख्या में चुपचाप कार्य रत हैं। एक दिन जैसे तालाब गायब हो गया मुंबई का अरब सागर नखोज हो जायेगा। गंगा को हमने नमामि करके पटना से दूर भेज ही दिया है , मरीन ड्राइव बनकर तैयार है , चौपाटी , जुहू पर पागलों की तरह भीड़ लगाने वालों की फ़ौज बहाल हो गयी है. अब बस बम्बई के अरब सागर को पटना के मरीन ड्राइव के किनारे लगा देना है। अब वो दिन दूर नहीं है. पटना मुंबई होगा। मिल गया है कोड़ा, बस चाहिए जीन लगाम और घोडा.