सड़क पर श्री राम !
सब कुछ बदल रहा है। मेरी आँखों के सामने मेरा पटना बदल रहा है. मैंने पचासों वर्ष पटना में गुज़ारे हैं लेकिन प्रभु श्री राम को, गली गली मदोन्मत्त भीड़ के कंधे पर पर शर संधान की मुद्रा में गश्त करते हुए कभी नहीं देखा. प्रभु श्री राम ने जब भी शस्त्र उठाया, धर्म की रक्षा हेतु या किसी , दुर्दांत ,अपराजेय दुष्ट के वध के लिए। अन्य अपराधियों की खबर लेने के लिए तो अनुज और उनकी सेना ही काफी थी. अचानक कौन सा ऐसा संकट आ पड़ा है? क्या गली गली रावण, खर , दूषण , त्रिशरा और बाली उत्पन्न हो गए हैं कि स्वयं प्रभु श्री राम को पुलिस की भांति गलियों में सशस्त्र गश्त लगानी पड़ रही है. क्या यह भी स्मरण कराना होगा कि आज के दिन ही माता कौशल्या ने प्रभु श्री राम से विष्णु स्वरुप त्यागकर " कीजे शिशु लीला अति प्रियशीला यह सुख परमा अनूपा." की विनती की थी। आज का दिन तो श्री राम के उस नयनाभिराम नवजात शिशु रूप का दर्शन कर ह्रदय जुड़ाने के लिए है. क्या हम इतने क्लीव और नपुंसक हो गए है कि नवजात शिशु श्री राम को भी नहीं बक्शते। मेरे मन में - और अधिकाधिक हिन्दुओं के मन में - श्री राम का असीम करूणा का स्वरुप ही रचा बसा है. बिना जगज्जननी सीता का उनका ध्यान ही नहीं होता। सिया राम मैं सब जग जानी . करौं प्रणाम जोर जग पानी. आज श्री राम निपट निस्संग क्यों हो गए? श्री राम सीता जब भी सीता से विलग हुए हैं उसका एक लौकिक उद्देश्य रहा है । सीता हरण रावण की मृत्यु का कारण बना साथ ही रावण जैसा विद्वान, प्रतापी ,शिव भक्त सदा के लिए कलंकित हो गया। सीता का निर्वासन भी हुआ , समकालीन मर्यादा के निर्वाह के लिए. आज किस प्रयोजन की सिद्धि हेतु या किस उद्देश्य की पूर्ति के लिए किसने श्री राम से उनके जीवन संगिनी को सदा के लिए विलग कर दिया? किसने रचा ये विधान ? शास्त्रों,पुराणों , परम्पराओं का संपादन , संक्षिप्ति करण , रूपान्तरण कौन और किस प्रयोजन से कर रहा है? हर हिन्दू के लिए जानना आवश्यक है क्योंकि रामचरितमानस /रामकथाएं हमारी साझा विरासत है किसी फिल्म का स्क्रिप्ट नहीं जिसे व्यापारिक कारणों से कोई ट्विस्ट दिया जा सके.
No comments:
Post a Comment