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Wednesday, October 20, 2021

बिहारी होने का दर्द


सोचा था आभासी दुनिया से संन्यास ही ले लूँ। वानप्रस्थ अवस्था में भी अगर आध्यात्मिक चिंतन ,मनन नहीं करूंगा तो कब करूंग। आध्यात्म तो हम बिहारियों को विरासत में मिला है . कपिल वास्तु से आकर, दर दर की ख़ाक छानने के बाद परम पूजनीय महात्मा गौतम बुद्ध भगवान को ज्ञान आख़िर बोध गया में ही प्राप्त हुआ. बोधि वृक्ष के नीचे।सनद रहे यह ज्ञान दाई भूखंड बिहारियों की खतियानी ज़मीन है . और वह बोधि वृक्ष हमारी कल्प तरु. गाहे बगाहे बौद्ध धर्म की अनुयाई देशों को एक टहनी भेजकर उससे हम गुडविल कमाते रहते हैं। मैं एक ही बार बोध गया, गया. ( शुक्र है कि मेरा नाम गया नही है ,नहीं तो "गया गया गया " , इसे अंग्रेजी में कैसे कहेंगे ,जो लोक दर्शन का सबसे अहम् प्रश्न है , में फंसकर रह जाता। एक जांच के सिलसिले में गया था इसलिए थोड़ी हड़ बड़ी में था वरना थोड़ा बहुत ज्ञान तो तब ही प्राप्त हो गया होता। बहरहाल सरकार ने एक अच्छा काम किया है, जो अभागा बोध गया न जा सके उसके ज्ञान प्राप्ति के लिये स्थानीय व्यवस्था करा दी है. पटना रेलवे स्टेशन जाने के रास्ते में में एक अत्यंत रमणीय स्थल में एक बुद्ध स्तूप बनवाकर. कुछ भौतिकवादी कुतर्क करते हैं कि बाइस एकड़ के इस भूखंड का पटना के सबसे व्यस्त इलाके को डी कंजेस्ट किया जा सकता था। लेकिन नकारे लोगों की कमी कहीं नहीं होती.
मेरा ख्याल है कि स्टेशन पहुँचने की हड़बड़ी में शायद आपको वातानुकूलित मैडिटेशन सेंटर में ध्यान करने का अवसर न मिले, पर निश्चिंत रहिये , इस भवन का ऐसा माहात्म्य है कि पटना के बाहर पाँव रखने के पहले आप को यहाँ आना ही होगा. नगर विभाग के कुशल रण नीतिकारों ने इसके ठीक सामने ट्रैफिक की संरचना महाभारत के एक अत्यंत प्राचीन पांडुलिपि में वर्णित चक्रव्यूह के अनुरूप की है. अभिमन्यु को छोड़िये इस चक्रव्यूह को भेदने का तरीका मैं बताता हूँ। आप जहाँ भी इस ट्राफिक भंवर जाल में फंसे गाडी से या टेम्पो से उतरकर सामान अपने सर पर लें और सीधे स्टेशन की और दौड़ें. लेकिन सर पर आप अपना सामान तो लेंगे नहीं आप. मानव मात्र घमंड एवं अहंकार पुतला है, पर बिहारी तो बस पूछो मत . बड़बोलेपन में भी उसकी कोई मिसाल नहीं। कुपोषण और अशिक्षा से कृशकाय उसके शरीर का एक आधा हिस्सा हाडमांस बाकी आधा अहंकार ,बड़ बोले पन और डींग हांकना है । रण बांकुरा तो ऐसा कि बस बात बात में तलवार के जगह बाल की खाल खींच कर अपना डी एन ए निकाल लेता है ।
विरासत की बात जब चल निकली है तो यह भी बताये देता हूँ कि श्री वाल्मीकि की ही परंपरा में वाल्मीकिनगर में अवतरित महाकवि श्री मनोज वाजपेयी जी ने बिहारियों के यायावरी प्रवृत्ति, त्याग एवं आध्यात्मिक रुझान पर एक महाकाव्य ही लिख डाला । इसका अखंड पाठ एवं मनन के उपरांत रेलगाड़ियों में गठरियों ही तरह ठसाठस भरे हुए हर दिशा में जाते , हर दिशा से आते बिहारियों के पलायनवादी प्रवृत्ति के गूढ़ दर्शन को आप समझ सकेंगे । सब कुछ तो है बिहार में , दूध घी की नदियां बहती हैं, शिक्षा के अवसर हैं, फिर भी पलायन? "दू बिगहा में घर बा लेकिन सूतल बानी टेम्पो में। " तप , त्याग , विषय वासना से मुक्त बैरागी का रहस्य जानने के लिए आपका ट्रेन छूटना ज़रूरी है.
आपकी गाडी छूटेगी इसकी गारंटी मैं लेता हूँ. हमारे भोज पुर में भविष्य द्रष्टाओं ने इस की परिकल्पना बहुत पहले की थी। 'तीसरा उड़ान में तीतर पकड़िहें।" लेकिन अब ये आसान हो गया है , आप दूसरे प्रयास में ही ट्रैन पकड़ सकते हैं। सामान क्लॉक रूम में डालिये , सकुचाइये मत आप के साथ कुछ जाने वाला नहीं है, हाँ क्लॉक रूम से हो सकता है कि अंतिम यात्रा के पूर्व ही आपकी इह लोकिक सम्पदा आप से विलग हो जाय. पर इसकी चिंता मत कीजिये , आपकी अगली गाड़ी १० -१२ घंटे बाद है इसलिए घर जाने का मोह त्यागिये। पैदल ही निकल लीजिये मैडिटेशन सेंटर की और , ध्यान रहे बौराये ट्रैफिक में कहीं आपकी आत्मा शरीर से विलग नो हो जाय। ध्यान से आत्मा का गहरा समबन्ध है। मेरा अनुमान है ३ ४ घंटे में आप अवश्य ध्यान केंद्र पहुँच जायेंगे। ध्यान लगाइये , ध्यान रखिये ऐसे भी ध्यानावस्थित न हो जांय कि गाडी फिर छूट जाय। लौटने ले लिए चार घंटे बचे रहें। कश्मीर, मणिपुर , त्रिवेंद्रम की गाड़ियां दिन रात चलती है, लद जाइये , किसी में.
जम्मू कश्मीर में बिहारी लगतार मारे जा रहे हैं। बिहारी तो रोज़ ही देश में मारे जाते हैं ,रोज़मर्रे की घटना का खबर क्या बनाना। उनके मरने का मातम भी क्या मानना जो देश की एकता और अखंडता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दे। जहाँ पूरा देश पृथकता वादी , आतंकियों,राष्ट्र विरोधी तत्त्वों का अखाड़ा बना हुआ है सही मायने में पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने वाला बिहारी ही एकमात्र जीव है । इतिहास गवाह है , बिहारी नागालैंड में मारे गए हैं , आसाम में मारे गए है , पंजाब , गुजरात महाराष्ट्र , द्रविड़ उत्कल ,बंगा , सबने इनका शोषण किया, ज़ुल्म किया। हमारे नेताओं ने अनेको बार कहा "बिहार में सकुछ है " , फिर भी उन घुमक्कड़ों का सरकार क्या करे जो यहाँ की बड़ी नौकरिया छोड़कर पहलगाम की वादियों का लुत्फ़ लेने के लिए वहां गोलगप्पे बेचनें चले जाते हैं .
लेकिन एक प्रश्न मेरे मन को लगातार लगातार कुरेद रहा है. ये बिहारी है कौन ? पचास साल के सार्वजनिक जीवन में एक भी बिहारी बिहार में तो कभी दिखा नहीं। यहाँ तो राजपूत मिले ,भूमिहार मिले, स्वजतीय कायस्थ मिले , यादव , बनिया पासवान लेकिन बिहारी तो कभी नहीं मिला. यदि बिहार में पासवान जी मरते तो ये दलित मामला होता, साह जी मरते तो ओ बी सी का मामला होता, फॉरवर्ड कास्ट के होते तो अगड़ी जाती समझती , ये अचानक नई परंपरा की शुरुआत क्यों हो गयी।नेताओं के बयानों से लगता है पूरा बिहार शोक निमग्न है. क्यों भला ? वोट जात को देते हैं , तो संवेदना गैर जातियों को क्यों , यही सबक हमारे नेताओं ने सिखाया है न , इसी पर जनता को चलना है न ?
ज्ञान , अज्ञान ,सामाजिक न्याय की आभासी दुनिया, राजीनतिक यथार्थ की वोट लोलुप दुनिया , वैराग्य, भोग, त्याग के मकड़ जाल में फंसा हुआ मैं सोचता रहा कि ज्ञान पिपासा के इस कीड़े ने मुझे कब काटा? गाँधी मैदान की तरफ तो बरसो से नहीं गया , और ज्ञान भवन बनने के बाद तो ब्लिकुल नहीं। शपथ। "कौन है ये बिहारी , बिहारी , बिहारी ?" पर अचानक एडवर्ड केकुले की तरह मुझे अनुभूति हुई.
बाहरी प्रदेशों में निषिद्ध एवं एवं हेय व्यक्तियों की पहचान का शब्द है बिहारी। गले में घंटी की तरह . बिहार की सरकारें केंद्र सरकार के आगे पांच लाख , दस लाख करोड़ की मांग करती है विपन्न बिहारी का रूप धरकर ,कुछ इस तरह जैसे पृथ्वी विष्णु भगवान से याचना हेतु गाय का रूप धारण करती है. शौकिया बाहर मज़दूरी करने वाले इस प्रदेश के निवासियों को रैंडम हिंसा में मारे जाने पर सरकार मरणोपरांत दो लाख रुपये, श्वेत चादर और 'बिहारी" की मानद उपाधि देकर दुनिया से रुखसत करती है. बिहार में बिहारी को खोजना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है ।
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